ये जो बीज आज बोया है मैनें
जर्रा जर्रा इसका काम आयेगा
जाया कुछ भी नहीं जाता जहां में
कल वृक्ष बन कर यही उभर आयेगा

Poetry, Shayari and Gazals
ये जो बीज आज बोया है मैनें
जर्रा जर्रा इसका काम आयेगा
जाया कुछ भी नहीं जाता जहां में
कल वृक्ष बन कर यही उभर आयेगा
खो देने का डर कैसा
खुद पर जब विश्वास हो
जमी कि उम्मीद हि क्यो करना
आसमाँ उड़ान भरने की जब प्यास हो
रंग-बिरंगी इस दुनिया की
फिर किसी रंगमें घुल जाये
ओढ़ के चोला मनचाहे रंग का
इक और कीरदार से मिल आये
तुम जानते तो हो
खुद कि अहमियत को
क्यो खोजते रहते हो फिर
दुनिया की निगाहों में
लहरे तेज है समंदर में
तुफान आने से डरे क्या
अभी तो कश्ती ले निकले है
डर से समझौता करे क्या
वह मंज़िल क्या मंज़िल कहलाना
जो जान ना निकाल दे राहि की
वह कश्ती क्या कश्ती कहलाना
हो जिसे ना आस साहिल की
दुनिया की धुंधली नेत्रों से
मुल्यांकन न अपना मानो तुम
तुम अनंत शक्ति के आदि हो
भीतर झाक अपने जानो तुम
खुलती हि नहीं नींदसे होकर यह बंद आंखे आजकल
लगता है ईनसे बडे ख्वाबो का बोझा झेला नहीं जाता
जान लिया अब तक जो तुने
उस अल्प में ना संतोष मान तु
समय मांगता हरदम परीवर्तन
इस बात को भी जरा जान तु
कुछ अनजानी राहो पर
खुदके दम पर निकले थे
चोंटे हजार खाई थी हमने
पर खुदसे ही हम संभले थे