जिंदगी के मुसाफिर है सब यहां
क्यो ना इक दुसरे को रास्ता दिखाया जाये
जाना ही है गर दो दिनों का बसेरा कर के
क्यो ना फिर यादों में रहकर मुस्कुराया जाये

Poetry, Shayari and Gazals
जिंदगी के मुसाफिर है सब यहां
क्यो ना इक दुसरे को रास्ता दिखाया जाये
जाना ही है गर दो दिनों का बसेरा कर के
क्यो ना फिर यादों में रहकर मुस्कुराया जाये
जब भी भीड़ में जाता हूं
मैं सौ नकाब ले जाता हूं
हिस्सा भीड़ का बन जाता हूं
खुद को कहीं ना पाता हूं
जिम्मेदारीयो का बोझा लिए सिर पर
हालात में किसी भी बसर हो जाना है
नुमाइश पसंद नही है हमें इन गमों की
रोना हैं पर आंसू भी नज़र नहीं आना है
क्या बताये ऐ जिन्दगी
यूं ही दिन गुजरते जा रहे है
तुझे जानने की कोशिश में
हम ही अजनबी बनते जा रहे है
दूर ही रहा किजीए थोड़ा
बना रहेगा प्यार रिश्तों में
ज्यादा नजदिकीया अक्सर ही
नुक्स निकाला करती हैं
मैला हो गया जो पैरहन
तो बदलकर आ जाऊं मैं
गर मन ही हो जाये मैला
तो राह कौन सी जाऊं मैं
कोई बुझा गया है दिये शायद
क्यो ना फिर से इन्हे जलाया जाये
अपने होकर अनजान से बैठे है
क्यो ना फिर से इन्हे मिलाया जाये
इन जानी सी राहों के
कुछ नजारे है बदलें से
आंखें हैं ये धुंधली
या नज़ारे है धुंधले से
अरमान दफ्न किये
वो अपने सीने में
मुस्कराकर कहते हैं
सब खैरियत है
परख लिया किजीए
ख़ुद की नजरों से भी कभी
सुनाई ही दिये सिर्फ जो
अक्सर सच्चाई नहीं होती