
ये कैसी आदतों के बनकर गुलाम बैठे हो
बेदिल जिस्म वाली बनकर अवाम बैठे हो
हकीकत से हरदम करते हो यूं पर्दा
करके सब कुछ अपना निलाम बैठे हो
यहीं चलता आया है यही चलता रहेगा
कहकर ऐसा फरमाते आराम बैठे हो
थोड़ी सी तो कीमत रखते खुद की भी
बस करते हुए सबको सलाम बैठे हो
वो हो रहे हैं मशहूर न करके कुछ भी
तुम सब कुछ करके यूं बेनाम बैठे हो
दुसरो की नजरों में खोजते रहे खुद को
क्या वक्त हैं आज कहीं गुमनाम बैठें हो
-Rarebiologist Quotes
वाह कम्माल का ग़ज़ल। एक सुझाव सादर प्रेषित है। शब्दों को सही मात्राओं में लिखें आप। जैसे- कीमत, दूसरे। शेष शानदार 👏👏👏
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सुझाव के लिए बहुत धन्यवाद।
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