बंद कमरें में घुमते रहते हो
ये शहर भला कैसे पता होगा
खोजने की भी ना कि कोशिश कभी
तुम्हे हुनर अपना कैसे पता होगा

Poetry, Shayari and Gazals
बंद कमरें में घुमते रहते हो
ये शहर भला कैसे पता होगा
खोजने की भी ना कि कोशिश कभी
तुम्हे हुनर अपना कैसे पता होगा