
हर शख्स यहां आजकल
जानकर भी अनजाना क्यो है
कल तक ढुंढता था जिनको
उन अपनो से बेगाना क्यो है
हसी के ठहाके लगते थे जहां कभी
मातम का वहा आज ठिकाना क्यो है
किस्से सुनते थे जिन गलियारों मे कभी
लगता आजकल वहा वीराना क्यो है
कहते थे चार लोगों में अपना जिसे
बंद घर उसके आज जाना क्यो है
कल तक करता था फिक्र जो जमाने की
खुदसे हि लगता उसे आज ज़माना क्यो है