
इन जानी सी राहों के कुछ नजारे है बदलें से
आंखें हैं ये धुंधली या नज़ारे है धुंधले से
बेबाक से चलते थे कभी इन्हीं राहों पर
आजकल हम हैं संभाले या खुद ही संभले से
मंजिलों तक क्या जाती है यह राह मेरी
रास्तों के मंज़र भी ये कुछ लगते है बदले बदले से
मुसाफिरों का कहां रहता है यहां ठिकाना
राह दिखे जिधर हम जाते है चले चले से
जिस से भी मिलते हैं कहता है हम से वो
आज कल तुम नहीं लग रहे हो वो पहले से